रविवार, 19 जुलाई 2020

मेहंदी की खुशबू





एक वक्त था,
जब सावन आता था,
और मैं शिवानी की नायिका,
शरतचन्द्र की नायिका,
मैत्रेयी की नायिका बन जाती थी ।
हरी चूड़ियों से भरी कलाई पर,
मैं खुद ही वारी वारी जाती थी ।
बिछिया, पायल और धानी चुनर,
मैं सर से पाँव तक एक उपन्यास बन जाती थी ।
आसमान से बाँधती थी झूला,
पहाड़ों तक पींगे लेती थी ।
नदिया, सागर की लहरें,
मेरे साथ साथ चलती थीं ...
बिना मेहंदी सावन शुरू ही नहीं होता था
... अचानक !
मैं नायिका होने के ख़ुमार से दूर हो गई,
जितिया, नवरात्रि, खरमास में बदली गई चूड़ियाँ,
कलाइयों में ठहर गई ।
उदासीनता गहरी होती गई,
हँसी अधिकतर बनावटी हो गई,
आँखों के मेघ भी छंट गए,
चेहरा बंजर होने लगा ...
ईश्वर की लीला,
दो बूंद बारिश हुई
मैं ही सावन बन गई,
बन गई झूला,
पसंद करने लगी
नन्हीं नन्हीं चूड़ियाँ ।
ये बूंदें कभी मोर बन जाती हैं,
कभी मेघ गर्जना,
कभी बरसती हैं,
गोद को झूला बना झूलती हैं
मेरी हथेलियों में
स्वाति नक्षत्र की फुहार सी पड़ीं
दो बूंदें ....
एक बूंद कात्या
एक बूंद अमाया
इनसे आती है _ सोंधी सोंधी खुशबू
वे तपते दिल पर बरसती जाती हैं,
मेरा पूरा वजूद
मिट्टी का घर बन जाता है
और वे -
शिवानी, शरतचन्द्र, मैत्रेयी की नायिका,
नज़रबटटू बन मैं उनके साथ रहती हूँ,
अब मेहंदी की खुशबू फिर से बिखरेगी ...

5 टिप्‍पणियां:

  1. सावन जीवन में कितने रंगों में सामने आएगा यह कोई नहीं जानता,
    बहुत प्यारी हैं ये सावन की ये दो बूँद कात्या और अमाया
    शुभाशीष व प्यार दोनों को!

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  2. बनी रहे बूंदे ,बरसात रहे सावन

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  3. बच्चे उर्जा का श्रोत बने रहें इसी तरह।

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  4. बेहद सुखद है इन बूंदों का आपके मन आँगन में उतरना और आपके वजूद का सावन बन जाना ..... अप्रतिम 🥀🥀

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  5. मैं बस इस पृष्ठ पर ठोकर खाई और कहना है- वाह। साइट वास्तव में अच्छी है और अद्यतित है।

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