गुरुवार, 22 जून 2017

कल्पना करो




कल्पना करो
....
देश की बागडोर
एक दिन तुम्हारे हाथ में होगी
सूरज तुम्हारी मुट्ठी में होगा
तब यह सूरज
कहाँ कहाँ रखोगे ?
जब अधिक झुलसाए उसकी आग
तो बादल को कैसे बुलाओगे
सम स्थिति पर
धरती को कैसे रखोगे !

शांत मन से
कल्पना करो
मानो
हर कदम में एक जादू है
बस उसे बढ़ाने की देर है
कुछ ठोकरों के कमाल होंगे
फिर तुम दृढ होंगे

प्रकृति ने जो कुछ हमें दिया है
वह हमारी आत्मशक्ति बढ़ाने का
उत्कृष्ट माध्यम है
सूरज
चाँद
बादल
हवा
रिमझिम बारिश
नदी-नाले
पर्वत-रेगिस्तान
कंकड़, रेत
हर छोर में ज्ञान है
एकांत में अपनी प्रतिध्वनि सुनो
तुम्हारी हर कल्पना में
गुरु मिलेंगे
जीवन का विस्तृत क्षेत्र
तुम्हारे लिए गुरुकुल होगा
दूब से लेकर शून्य तक
कल्पना करते जाओ
यही बहुत है
सबकुछ है
:)

मंगलवार, 6 जून 2017

नन्हे पैरों के नाम.......




अम्मा की विरासत है यह नन्हें पैरों के नाम
......
हम प्रायः यही सोचते हैं कि वसीयत होती है आर्थिक सम्पत्ति की
हम नहीं समझते समय रहते कि इस सम्पत्ति से हमारे बीच दीवारें खड़ी होती हैं
हम हिंसक प्रवृति के हो जाते हैं
लेकिन शब्दों की थाती
वह भी वो
जो लिख दी गई हो
बाँटी नहीं जा सकती
अपनी मर्ज़ी से
वह अपने साथ होती है
जैसे अम्मा की सौगात मैं अपनी मर्ज़ी से तुमदोनों को दे रही हूँ
इसे गुनगुनाना
इसे संभालना
तुमदोनों की मर्ज़ी  ...
यह किसी एक के लिए नहीं,
सभी नन्हें पैरों के नाम है



( १ )

हम हैं मोर,हम हैं मोर
कूदेंगे , इतरायेंगे -
पंखों का साज बजायेंगे,
आपका मन बहलाएँगे ।
हम है मोर,हम हैं मोर
नभ में बादल छाएंगे,
हम छम-छम नाच दिखायेंगे
आपको नाच सिखायेंगे ।
हम हैं गीत,हम हैं गीत
दरिया के पानी का
मौसम की रवानी का
आपको गाना सिखायेंगे ।
हम हैं धूप,हम हैं छांव
आगे बढ़ते जायेंगे
कभी नहीं घबराएंगे
आपको जीना सिखायेंगे ।


( २ )

मैं हूँ एक परी
और मेरा प्यारा नाम है गुल
गर चाहूँ तो तुंरत बना दूँ
शूल को भी मैं फूल !
चाहूँ तो पल में बिखेर दूँ
हीरे,मोती ,सोना
पर इनको संजोने में तुम
अपना समय न खोना !
अपना ' स्व ' सबकुछ होता है
' स्व' की रक्षा करना
प्यार ही जीवन-मूलमंत्र है
प्यार सभी को करना !


( ३ )

मैं हूँ रंग-बिरंगी तितली
सुनिए आप कहानी,
मैं हूँ सुंदर,मैं हूँ कोमल
मैं हूँ बड़ी सयानी
इधर-उधर मैं उड़ती - फिरती ,
करती हूँ मनमानी ! मैं हूँ.................
फूलों का रस पीती हूँ
मस्ती में मैं जीती हूँ
रस पीकर उड़ जाती हूँ
हाथ नहीं मैं आती हूँ !
मैं हूँ रंग-बिरंगी तितली........


( ४ )

बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी
कहो कहाँ से आती हो
घर-घर जाकर चुपके-चुपके
कितना माल उडाती हो ।
नहीं सोचना तुम्हे देखकर
मैं तुमसे डर जाती हूँ
म्याऊं- म्याऊं सुनकर तेरी
अन्दर से घबराती हूँ !
चाह यही है मेरी मौसी
जल्दी तुमसे कर लूँ मेल
फिर हमदोनों भाग-दौड़ कर
लुकाछिपी का करेंगे खेल !

 सरस्वती प्रसाद(अम्मा)

रविवार, 4 जून 2017

मंथन करना सीखो




सबसे बड़ा रुपैया नहीं होता बेटा 
सबसे बड़ा होता है आपस का प्यार 
ख्याल 
सम्मान .... 
बासी रोटी सुख-संतोष धन देती है 
जब जैसा मिले खाओ 
पहनो 
.... निःसंदेह,
पैसा तुम्हारे लिए कुछ भी उपस्थित कर सकता है 
पर उस लेने की भीड़ में 
तुम सिर्फ चीजों का ही आकलन करते रह जाओगे !
प्रकृति ने बिना मोल के 
क्या क्या दिया है 
तुम उसकी गहराई में नहीं उतर पाओगे !
जीने के लिए ज़रूरी है 
व्यक्तित्व का निर्माण 
जिसके लिए 
सत्य का मार्ग अपनाना होता है 
कर्ण की दानवीरता 
एकलव्य की निष्ठा 
अर्जुन का लक्ष्यभेद 
और कृष्ण का सारथि होना 
तुम्हें ज्ञान का 
अद्भुत मार्ग दिखाएंगे 
सुदामा की मित्रता 
मित्रता के सच्चे अर्थ देगी 
.... 
प्रकृति के कण कण में 
ईश्वर ने कई गीत,
और रंग भरे हैं 
सीखने के लिए 
उन सबके पास 
शांत,स्थिर मन के साथ 
बैठना होगा 
..... 
पैसा ज़रूरी है 
लेकिन 
हर परीक्षा पास करने के बाद !
ताकि 
तुम उसका उचित प्रयोग कर सको 
सिर्फ मॉल 
चकाचौंध की यात्रा 
डिस्को 
और इससे जुडी स्पर्धा की दौड़ 
तुम्हें बर्बाद करेगी 
दीमक की तरह 
... 
प्रायः गलत रास्ते आकर्षित करते हैं 
आकर्षण यदि तुम्हें अपनी ओर खींचे 
तो सोचो 
इससे क्या होगा !
मंथन करना सीखो,
मंथन से ही अलग होगा 
अमृत और विष !
....