शनिवार, 8 दिसंबर 2018

दुआ है, यह सबकुछ तुमलोगों के पिटारे में हमेशा हमेशा रहे ...



मेरे पास है तो एक जादुई छड़ी,मैं बना सकती हूँ इस दुनिया को सिंड्रेला की बघ्घी जैसा, जहाँ शेर,चीते,भालू,बन्दर,गिलहरी...सब तुमसे बातें करेंगे,तुमको जंगल की सैर कराएंगे,चंदामामा धरती पर उतरकर तुम्हारे संग आंखमिचौली खेलेंगे,सूरज चाचू अपने गर्म तवे पर रोटी बनायेंगे,और चंदामामा की माँ अपने हाथों तुम्हें खिलाएंगी । 
लेकिन, तुम्हारी झोली में इससे अधिक प्यारे जादू हैं, माँ-पापा,बुआ,मौसी,मामा ...और गर्म तवे पर रोटी बनाने के लिए नानी-दादी । शेर,खरगोश,भालू,बन्दर,गिलहरी तो इनकी कहानियों में रोज खड़े रहते हैं यह कहने को कि "बोलो मेरे आका,क्या खेलना है, कहाँ खेलना है" ।असली जादू इसे नहीं कहते,असली जादू है अपना घर, जहाँ भूखे रहकर भी जादू देखने को मिलता है । इसमें होता है प्यार और सम्मान ।यह न हो तो कोई सपना नहीं ठहरेगा, ना ही कोई जादू । और यह जादू होता है पापा,माँ की सुरक्षा में,नानी/दादी के बिगाड़ते प्यार में (ऐसा कहा जाता है)और पूरे दिन की छोटी छोटी खुशियों में । और मेरी दुआ है, यह सबकुछ तुमलोगों के पिटारे में हमेशा हमेशा रहे ...  

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018

अपनी जड़ों से विमुख मत होना !




ज़माना - कभी एक सा नहीं रहता मेरी परियों,
बदलता रहता है !
मौसम बदलता है,
घर बदलता है,
शहर, देश  ...
परिवर्तन एक स्वाभाविक क्रिया है।
महत्वपूर्ण बात यह है
कि ,
परिवर्तन कैसा है !
सब अपना रहे,
यह सोचकर,
तुम भी मत अपना लेना।
देखना,विचारना,
अपने आप को तौलना,
बात को तौलना,
फिर उसे स्वीकार,
अस्वीकार करना  ...
किसी भी बहाव में,
अपने अस्तित्व को मत नकारना,
गुरु के अस्तित्व को मत नकारना,
बुज़ुर्गों के अस्तित्व को मत नकारना  ...
"मातु पिता गुरु प्रभु के बानी।
बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥"
परिवर्तन जैसा भी हो,
 इसे मत भूलना
अपनी जड़ों से विमुख मत होना !

सोमवार, 16 अप्रैल 2018

कुनू / अमु - आओ सीखें अच्छी बात










अलका आंटी के साथ परीलोक की सैर करो, और परियों के संग खेलते हुए सीखो एक अच्छी बात ! 


Alka Srivastava 
#परीलोक_की_सैर
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झिलमिल और रिमझिम दो बहुत पक्की सहेलियाँ थीं। क्लास हो या प्ले ग्राउंड, दोनों एक साथ रहती। एक साथ टिफिन करतीं और एक दूसरे के पास बैठती। दोनों का घर भी एक दूसरे के पड़ोस में था इसलिए दोनों एक साथ ही स्कूल जाती और एक साथ ही स्कूल से वापस घर आतीं।
एक दिन रिमझिम के पापा नया रंगीन टीवी लाए। पूरे मोहल्ले में शायद वह पहला रंगीन टीवी था। रिमझिम के घर शाम को बच्चों की भीड़ लगने लगी। इस तरह बच्चों ने शाम को बाहर पार्क में खेलना बंद कर दिया। पढ़ाई के साथ खेल कितना जरूरी है ये बात जानते हुए भी बच्चे शाम को डोरेमान देखने का लालच छोड़ नहीं पाते थे। बच्चे पढ़ाई के बीच मिलने वाला एक घंटे का समय जो पहले एक साथ पार्क में खेलकर बिताते थे अब एक घंटा टीवी देखकर बिताने लगे।
बाकी बच्चे तो फिर भी एक ही घंटा टीवी देखते थे। लेकिन रिमझिम को जब भी मौका मिलता टीवी देखने बैठ जाती। इसतरह रिमझिम की पढ़ाई पर तो असर हुआ ही उसकी आँखो पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। छः महीने के अंदर ही उसको चश्मा लग गया।
अगले दिन जब रिमझिम चश्मा लगाकर स्कूल पंहुची तो उसके सभी दोस्तों ने उसे चिश्मिश कहकर चिढ़ाना शुरु कर दिया। रिमझिम को चिश्मिश सुनना बहुत खराब लगा। फिर भी वह किसी से कुछ नहीं बोली। लेकिन जब झिलमिल ने भी उसे चिश्मिश कहकर चिढ़ाया तो उसे बहुत बुरा लगा वह झिलमिल से नाराज हो गयी। यहाँ तक कि उसने झिलमिल से बोलना भी बंद कर दिया।
अभी तक दो पक्की सहेलियाँ एक साथ दिखती थीं आज अलग अलग दिख रहीं थीं। दोनों ने अलग अलग अपना लंच किया और अलग अलग स्कूल से घर भी गयीं। शाम को झिलमिल रिमझिम के घर टीवी देखने भी नहीं गयी। अगले दिन संडे था। उस दिन सुबह भी दोनों एक दूसरे से नहीं मिलीं।
दोपहर को झिलमिल दादी के पास चली आई। उसके चेहरे पर उदासी थी। दादी समझ गयीं जरूर कोई बात हुई है। उन्होंने झिलमिल के सिर पर हाथ फिराते हुए पूछा,
"क्या बात है झिलमिल बेटा! आज बहुत उदास लग रही हो? कल से तुम रिमझिम के घर टीवी देखने भी नहीं गयी।"
"दादी माँ! रिमझिम मुझसे बहुत नाराज है।"
"क्यों? ऐसा क्या कर दिया तुमने?"
"कुछ नहीं दादी माँ..मैंने बस उसे चिश्मिश कह दिया था इसलिए वह नाराज हो गयी।"
"क्या रिमझिम चश्मा लगाने लगी है?"
"हाँ दादी माँ"
"ओह!! लगता है वह टीवी बहुत देखती है।
कल मैं उससे बात करूँगी।"
"नहीं दादी माँ! आप उससे बात न करना। वह बहुत घमंडी हो गयी है।"
"अरे!!! इतनी छोटी सी उम्र में ये घमंडी बोलना कैसे सीख लिया?"
"साॅरी दादी माँ"
"साॅरी मुझे नहीं..कल रिमझिम को बोलना।"
"ठीक है दादी माँ! अब कोई कहानी सुनाओ न..
झिलमिल ने दादी के गले में बाँहें डालते हुए कहा तो दादी ने मुस्कुराते हुए कहानी सुनानी शुरू कर दी।
"दूर बादलों के पार एक परीलोक है, जहाँ रंग बिरंगी परियाँ रहती हैं। खूबसूरत पोशाकों में सजी हुई। वे सब खूब खेलती कूदती मस्ती करती हैं। लेकिन सभी परियाँ बहुत अच्छी हैं एक दूसरे की मदद को हमेशा तैयार रहती हैं।"
"दादी माँ! क्या मैं भी परीलोक जा सकती हूँ?"
झिलमिल परीलोक जाने के लिए बड़ी उत्साहित थी। परीलोक के नाम से ही उसकी आँखों में चमक आ गयी थी।
"हाँ हाँ! बहुत देर हो गई चलो अब थोड़ी देर आराम कर लो।"
दादी ने जम्हाई ली और चादर ओढ़ ली। झिलमिल दादी के पास लेटी तो थी लेकिन वह बादलों के पार परीलोक की तस्वीरें अपने दिमाग में बना रही थी। तभी उसको ऐसा लगा बाहर खिड़की के पास कोई खड़ा है और धीरे धीरे उसका नाम पुकार रहा है। पहले तो वो कुछ डरी लेकिन फिर हिम्मत करके धीरे से बाहर आ गई। दादी आराम से सो रहीं थीं।
बाहर आते ही उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। सामने दो परियाँ खड़ी थीं, खूबसूरत रंग बिरंगी जैसी उसकी दादी ने बताई थीं, ठीक वैसी ही। उसने अपनी पलकें कई बार झपकाईं, उसे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। तभी एक परी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"झिलमिल! तुम परीलोक देखना चाहती थी न? इसलिए हम तुम्हें लेने आए हैं। चलोगी हमारे साथ?"
"हाँ हाँ क्यों नहीं? चलो..लेकिन मेरे तो पंख नहीं हैं मैं बादलों तक कैसे पँहुचूगीं?"
"कोई बात नहीं तुम बस अपनी आँखें बंद कर लो।"
झिलमिल ने अपनी आंखें बंद कर लीं और दोनों परियों का हाथ पकड़ लिया। कुछ देर बाद परियों ने उसे आंखें खोलने को कहा। झिलमिल ने जैसे ही आंखें खोलीं वह दंग रह गयी। उसने देखा वह सफेद रुई जैसे बादलों के ऊपर है। सामने ढेर सारी परियाँ उसके स्वागत के लिए खड़ी थीं। तभी रानी परी जो सुनहरे रंग का मुकुट लगाए थीं बोली,
"झिलमिल परियों के देश में तुम्हारा स्वागत है। तुम दिन भर आराम से यहाँ घूम सकती हो।"
झिलमिल खुश हो गयी। इस वक्त उसे लग रहा था कि वह जादू की नगरी में है। सामने छोटे छोटे पहाड़ थे, जो सोने जैसे चमक रहे थे। उसपर पत्थरों की जगह तरह तरह की चाॅकलेट लगीं थीं। बाग में सुनहरे रंग के पेड़ थे। जिनपर रंग बिरंगे रसदार फल थे। कुछ दवाइयों केपेड़ थे। जिनके रस का सेवन करने से कोई भी बीमारी ठीक हो सकती थी। पास ही एक झरना था जिससे मीठा शरबत जैसा पानी बह रहा था।
झिलमिल सारा दिन वहाँ खेलती रही। जब बहुत देर हो गयी तो उसे घर की याद आने लगी। वह उदास हो गयी। रानी परी ये बात समझ गयी। वो बोलीं,
"झिलमिल तुम घर जाना चाहती हो न?"
"हाँ रानी परी!"
"ठीक है हम तुमको घर भेजने का इंतजाम करते हैं। लेकिन जाने से पहले हम तुम्हें कुछ उपहार देना चाहते हैं। तुमको जो कुछ भी चाहिए ले सकती हो।"
"रानी परी! मेरी सहेली रिमझिम की नजरें कमजोर हो गयीं हैं। वो चश्मा लगाकर ज़रा भी अच्छी नहीं लगती है। आप कोई ऐसी दवा दीजिए जिससे उसकी आँखें ठीक हो जाएँ।"
रानी परी ने खुश होते हुए कहा,
"झिलमिल तुम्हारे सामने कितनी ढेरों चीजें हैं लेकिन तुमने उनमें से अपने लिए कुछ न माँग कर अपनी सहेली के लिए माँगा। जबकि तुम्हारी सहेली तुमसे नाराज़ है और उसने तुमसे बोलना भी बंद कर दिया है फिर भी तुमने उसका ख्याल रखा। तुम्हारी सहेली बहुत लकी है जो उसको तुम्हारे जैसी दोस्त मिली। मैं अभी तुमको दवा देती हूँ। लेकिन अपनी सहेली को बोलना कि वह टीवी कम देखे और खूब हरी सब्जी खाए। ऐसा करने से जल्दी ही उसकी आंखें ठीक हो जाएँगी"
तभी झिलमिल को रिमझिम की आवाज सुनाई दी। शाम हो गयी थी रिमझिम बाहर खेलने के लिए उसे बुला रही थी। झिलमिल ने दौड़कर रिमझिम को गले लगा लिया।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

अपनी मिट्टी को समझना




मेरे बच्चों,

यकीनन मैं वह शक्ति हूँ
जिसके आगे
तुम अपनी मनोकामना रख सकते हो
लेकिन तुम्हें याद रखना होगा
कि बिना कर्तव्य निभाए
तुम कोई कामना नहीं कर सकते !
सोचो,
बिना आग के भोजन बना सकते हो ?
बिना साँसें लिए जी सकते हो ?
नहीं न  ...
इसलिए
बिना प्रयास के
मात्र चाह लेना
उचित नहीं होता।
कुछ भी पाने के लिए
सामर्थ्य बढ़ाना होता है
शक्ति के आगे
सिर्फ कमज़ोरी दिखाना
शक्ति का अपमान है
और शक्ति का अपमान
तुम्हारा ही अपमान है।
अपनी मिट्टी को समझो
यानी समझो अपने सामर्थ्य को
फिर उस शक्ति का आशीष लो
प्राप्य तुम्हारे आगे होगा  ...

मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

गिरके ही सम्भलना सीखोगे




चढ़ना उन सफलताओं की सीढ़ियों पर
जो हम बड़ों से छूट गए थे !
लड़खड़ाओ कभी
गिरो कभी
तो घबराना मत
रोना मत
क्योंकि लड़खड़ा के
गिरके ही
सम्भलना सीखोगे
अनुभव ही जीवन के तरकश का
सिद्ध बाण होता है !
इस बाण का उपयोग धैर्य से करना
जब भी कोई रुकावट लगे
अपनेआप को अंदर से तौलना
अपने कदम ही कई बार गलत होते हैं
इसे सरलता से मानना
ज़िद ठानने से पहले
सौ बार सोचना
ज़िन्दगी तुम्हारी है
इसे मर्ज़ी से जीना
पर इस ज़िन्दगी से जुड़े जो तार हैं
उनका भी ख्याल रखना
फिर गौर करना
कि मर्ज़ी को परियों के पंख कैसे मिलते हैं
आकाश कैसे नीचे उतरता है
सूरज अपनी जलन को समेटकर
किस तरह शीतलता देता है !

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

चेस_और_ज़िंदगी






आज फिर मैं लेकर आई हूँ अलका श्रीवास्तव आंटी को, जीवन में कुछ बातें बहुत अहमियत रखती हैं, जिनको समझना बहुत ज़रूरी होता है।  यूँ भी कुछ भी जानने समझने के लिए एक अच्छा श्रोता होना ज़रूरी है, और एक अच्छा श्रोता ही जीवन में कुछ अच्छा कह सकता है !


#चेस_और_ज़िंदगी
****************
"अरे अनुभव! जब देखो तुम लैपटाॅप में ही लगे रहते हो। कभी अपनी माँ से भी बात कर लिया करो।"😈
"माँ मैं ऑनलाइन चेस खेल रहा हूँ। क्या करूँ कोई नहीं है जिसके साथ खेलूँ। मेरे कोई दोस्त चेस खेलना नहीं चाहते।"😡
"ओह! ऐसी बात है। वैसे चेस तो तुमको अच्छे से आता है। फिर तो तुम खूब जीतते होगे?"
"नहीं माँ! मैं चाहे जितनी अच्छी चालें जानता हूँ लेकिन हर बार हार जाता हूँ।"😓😓
"अनु! ऐसा करो चेसबोर्ड ले आओ। देखती हूँ तुम कहाँ गल्ती करते हो?"
"माँ आपको आता है चेस खेलना?😯
"थोड़ा थोड़ा 
*****************
"अरे माँ! आपको तो बहुत अच्छा खेलना आता है। आप तो हर बार जीत रही हैं। मैं हमेशा हार जाता हूँ।" 😧
"जानते हो क्यों?"😌
"क्यों माँ?😬😬
"बेटा! नो डाउट तुम्हारी चालें बहुत अच्छी हैं लेकिन तुम अपनी एक चाल चलने के बाद मेरी चाल नहीं देखते हो कि मैंने कोई मोहरा चला है तो क्यों? तुमको अपनी अगली चाल चलने का इंतजार रहता है। तुम चाहते हो कि कितनी जल्दी मैं अपना मोहरा बढ़ाऊँ और तुम अपनी सोची हुई चाल चल सको" 😒
"ओह माँ! ये सही कह रही हैं आप। मैं वाकई ऐसा ही करता हूँ।"😣
"अनुभव! क्या तुमको पता है हमारी ज़िंदगी में बहुत कुछ चेस की तरह होता है?
"वो कैसे माँ?" 😯
" आज मैं तुमको सिर्फ़ एक उदाहरण दूंगी।
पता है जब हमारे सामने कोई अपनी बात कह रहा होता है तब हम उसकी बात सही से सुनते नहीं बल्कि अपने बोलने का इंतजार कर रहे होते हैं। इस तरह सामने वाले ने क्या कहा और क्यों कहा? दरअसल वो हमें पता ही नहीं होता, क्योंकि हमारा ध्यान उसके बोलने पर नहीं बल्कि, जो हमें बोलना है इस पर होता है।"
"हाँ माँ! जैसे चेस खेलते समय मेरा ध्यान सिर्फ़ अपनी चाल चलने पर होता है। सामने वाले की चाल पर नहीं।" 😉
"बिल्कुल सही पकड़े हो। 😃
दरअसल जब सामने वाला अपनी बात को दृढ़ता से कहता है तो उसकी बात को ध्यान से सुनो। अगर कोई बात विज्ञान से संबंधित है तो देखो उसकी बात में वैज्ञानिक विश्लेषण है या नहीं? कोई बात तार्किक है तो उसके तर्कों को समझने की कोशिश करो। और हाँ अतार्किक बात पर कोई प्रतिक्रिया न दो।
जब तुम किसी की बातों को ध्यान से सुनते हो तो दरअसल तुम उसको दिमाग में स्टोर कर पाते हो। और जो दिमाग में स्टोर होता है वह तुमको याद रहता है। किसी की बात को ध्यान से सुनने पर तुम उसके शब्दों को नहीं उसमें छिपे अर्थ को समझते हो। अगर ज़िंदगी में कुछ सीखना है तो पहले दूसरों को सुनना सीखो। चेस के खेल की तरह धैर्य रखना सीखो। अपने बोलने या अपनी चाल चलने के इंतजार मात्र से तुम कुछ सीखने से और जीतने से वंचित रह जाओगे।"
"माँ! यू आर जीनियस।" 👏👏😍
और बातें बताइए माँ..मैं आपकी बातों को चेस से कोरिलेट कर पा रहा हूँ।" 😊
"आज के लिए इतना ही..😌😌

शुक्रवार, 9 मार्च 2018

तुम्हारा नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाए





मेरी कुनू, मेरी अमु 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को सार्थक करना 
नौ रस के समिश्रण के साथ जीवन का निर्माण करना। 
प्रथम रश्मि बनना 
रंगिणि बनना 
प्रकृति में जागरण का गीत बनना। 
जब भी उड़ान भरना 
आकाश को छूकर आना 
समंदर की लहरों को पाजेब बनाना। 
चेहरे पर शांत नदी का भाव रखना 
मुश्किलें आयें 
तो गर्जना बनना 
बिजली की तरह चमकना 
बरसना उतना ही 
जिसमें सोंधी सोंधी खुशबू बनी रहे 
और इंद्रधनुष तुम्हारा यश बन जाए 
देश के उन्नत भाल पर 
तुम्हारा नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाए 
कात्या, ...... अमाया 

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

वक़्त, तुम और मैं ...




वक़्त भागता है
और मैं उसके पीछे
कुनू ... अमु करते हुए
दौड़ती हूँ .
... अम्मू नानी पास
... आ जाओ कुनू
हाथ बढ़ाकर अमु ठुनकती है
अच्छा अच्छा तुम आ जाओ अमु
...
फिर दोनों को कहती हूँ
मैं बाहुबली नहीं हूँ
जाओ किसी को नहीं लेंगे ...
यह बात नहीं स्वीकारते हुए भी
मान लेती हैं दोनों
निःसन्देह यह विश्वास है
कि जाऊँगी कहाँ उनकी पकड़ से
और कितनी देर !

वक़्त को
उगते सूरज को
पक्षियों के गान को
धरती की हरियाली को
विस्तृत आकाश को
अपनी अपनी मुट्ठी में थामे
इन दोनों की दिनचर्या शुरू होती है
इनकी मीठी हँसी के दाने
मेरी ऊर्जा
और इनका  शोर  ...
अरे भाई,
बिना रोये गाये,
हठ किये
बचपन कहाँ गुजरता है !

इनकी ज़िद अपनी जगह
हम भी तो
इस बेफिक्र किलकारी में 
रंगों की पहचान कराना
नहीं भूलते
क से
A फॉर
10 तक की गिनती
छोटी छोटी कवितायेँ
कहानियाँ
प्रार्थना के बोल सिखा ही लेते हैं ।

इन्हें जिस तरह अपना खिलौना याद रहता है
अपनी शैतानियाँ याद होती हैं
ठीक उसी तरह
हम याद रखते हैं -
बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं
जैसा आकार दो  ... "

भागते वक़्त के साथ
कुनू अमु भागती है
उसी वक़्त के साथ
मैं भी दौड़ लगा लेती हूँ
ताकि परम्पराओं की छोटी सी घुट्टी ही सही
इन्हें पिला सकूँ
...

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

अलका श्रीवास्तव आंटी की बातों को ध्यान से पढ़ना






#अपने_नन्हें_दोस्तों_से_कुछ_बातें 
अलका श्रीवास्तव जी की 

बच्चों आज मदर्स डे नहीं है तो क्या हुआ? माँ के लिए कुछ लिखना हो तो हर दिन लिख सकते हैं। आज भी कल भी और चाहें तो मदर्स डे वाले दिन भी। 

खैर आज मैं आप सब नन्हें दोस्तों से सीधे बात करना चाहती हूँ। उनको आज चंपकवन की कहानी नहीं सुनाऊंगी बल्कि आज मैं मिलवाऊंगी अपने चंपकवन के दोस्तों की मम्मियों से..
*******************
🐘 गज्जू को तो सभी जानते होंगे..वो दो साल का हाथी का बच्चा है। जैसे आपकी मम्मी, आपको, पापा की डाँट से बचाती हैं, वैसे ही  गज्जू की मम्मी भी उसके पापा से उसे बचाती हैं । उसके पापा से उसकी सुरक्षा करती हैं।
 
क्या आपको पता है.. हाथियों के झुंड मे कोई भी मेल हाथी दूसरे मेल हाथी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। फिर चाहे वो उनका बेटा ही क्यों न हो। ऐसे में किसी भी मेल शिशु का जन्म होने पर उसकी मां उसकी हिफाज़त करती है और दूसरी मम्मी हथनियाँ उसका साथ देती हैं ताकि पापा हाथी,  बच्चे को कोई नुकसान न पहुँचा पाए। 

🐟 ये है मिष्ठी। इसकी एक मौसी हैं #माउथ_ब्रूडर...जो गहरे समुद्र में रहती हैं। एक बार छुट्टियों में मिष्ठी अपनी मौसी के पास गयी। वहाँ उसे बहुत मजा आया। वो अपनी मौसी माउथ ब्रूडर के बच्चों के साथ मौसी के गले के आस पास घूमती रहती थी और जैसे ही सामने से कोई खतरा आता था मौसी सब बच्चों को अपने मुँह में छिपा लेती थी। और जब खतरा टल जाता तो मिष्ठी और मौसी के बच्चे मुँह से बाहर आ जाते थे। और फिर उनका ऊधम चालू हो जाता था। इस तरह मौसी माँ अपने बच्चों की हिफ़ाजत करती हैं। 

🐒मीकू बंदर की एक बुआ हैं #बबून। वो अपने बच्चों को इस तरह सजाती संवारती हैं मानो बच्चों को गाड़ी में बैठकर स्कूल जाना हो। बबून बुआ अपनी उंगलियों से बच्चों के शरीर के एक एक भाग की सफाई करती हैं और बच्चों के शरीर में चिपके कीड़े और मृत त्वचा को खाती जाती हैं। जबसे मीकू की मम्मी बबून बुआ के पास से होकर आई हैं तबसे वो भी कभी कभी मीकू की ऐसी ही सफाई करती हैं।

चंपकवन के पास सुंदरवन में पक्षियों की एक जाति रहती है राजहंस..🐣बेबी राजहंस की 🐤मम्मियाँ भी अपने बच्चों की सफाई बहुत अच्छे से करती हैं। मम्मी राजहंस अपनी चोंच से बेबी राजहंस के शरीर पर जमी धूल हटाती हैं और साथ ही उसके पंखों पर प्राकृतिक तेल की एक परत भी लगा देती है। आप सोच रहे होंगे कि मम्मी राजहंस के पास ये तेल कहाँ से आया? 
दरअसल मम्मी राजहंस के शरीर में तेल ग्रन्थियाँ होती हैं जिससे तेल निकालकर वो बेबी राजहंस के पंखों पर लगा देती हैं। इससे बेबी राजहंस के पंखों पर पानी का असर नहीं होता है।

ये तो आप सभी जानते हो कि 🐹 किटी की 🐱मम्मी के नाखून और दाँत बहुत पैने हैं। जिनसे वो किसी भी जानवार को पछाड़ सकती हैं। जब किटी बहुत छोटी थी और उसने चलना नहीं सीखा था तब उसकी मम्मी अपने दाँतों से उसको एक जगह से दूसरी जगह ले जाती थीं लेकिन मजाल है जो एक भी दाँत किटी की मुलायम त्वचा को जरा भी नुकसान पंहुचा पाता।

इसी तरह 🐯 शेरू की मम्मी दिखने में बहुत  खतरनाक हैं लेकिन वो भी शेरू को बहुत ही सावधानी से मुँह से पकड़ कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती थीं। 

ये सभी मम्मियाँ अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखती हैं। 

लेकिन बच्चे उनकी भलमनसाहत का फायदा नहीं उठा सकते हैं। जैसे आप बच्चों की मम्मियाँ आपसे कोई गल्ती होने पर आपको कूट पीट देती हैं। ठीक वैसे ही शेरू की मम्मी शेरू की शरारत पर उसे मुँह से उठाकर धीमे से जमीन पर पटक देती हैं। शेरू समझ जाता है कि उसकी मम्मी नाराज हैं। और ऐसे में शेरू उन्हें मनाने और माफी माँगने के लिए उनसे  लिपट जाता है और जैसे आपकी मम्मी आपके sorry बोलने पर आपको माफ कर देती हैं वैसे ही शेरू की मम्मी भी उसे माफ कर देती है। आखिर वो भी एक माँ ही तो है। 

बच्चों इस तरह आपने देखा कि चंपकवन के जानवरों की मम्मियाँ अपने बच्चों का कितना ख्याल रखती हैं। बिल्कुल आपकी मम्मी की तरह। आपकी मम्मी भी तो आपको बहुत प्यार करती हैं न? हाँ शैतानी करने पर डाँट भी देती होंगी? और कभी कभी आपसे नाराज भी हो जाती हैं? 
कोई बात नहीं आप उनको साॅरी बोल दिया करो। देखना वो झट से मान जाएँगी।
चलो फटाफट अपनी मम्मी को #आई_लव_यू बोलो ❤❤

(बच्चे ही क्यों आप बड़े भी (बिना संकोच)अपनी मम्मी  को आई लव यू बोल सकते हैं। उनको अच्छा लगेगा....

 अल्का श्रीवास्तव

सोमवार, 22 जनवरी 2018

मीठी बातों से कभी मत बचना




मीठी बातों से कभी मत बचना 
मीठी बातें जब नश्तर बन चुभती हैं 
तभी 
अनुभव के 
आत्ममंथन के 
दरवाज़े खुलते हैं !
और 
जब तक वे दरवाज़े नहीं खुलते 
तुम जो जीते हो 
वह बस एक बचकाना खेल है !
बचपन को पास रखो 
लेकिन हाँ
बचपना मत दिखाओ 
... 
निःसंदेह,
मीठी बातें मन को सहलाती हैं 
लोरी सी लगती हैं
पर
अजीबोगरीब हालात वहीं से बनते हैं 
मीठी बातें हद से अधिक हो
तो जीने का सही सलीका नहीं आता
सिर्फ मीठा खाओ
तो दांत सड़ जाते हैं 
तालमेल बहुत ज़रूरी है
सीखने के लिए
कुछ बनने के लिए
तीखे बोल रामबाण होते हैं
मुमकिन है 
आज बुरा लगे
लेकिन समय के साथ 
उसकी बारीकियाँ मुस्कान दे जाती हैं