गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

कुनू अमू




कोयल आई कुहू कुहू
बोली ये है कुनू कुनू
आई गौरैया
मटक मटककर
बोली ये है अमू अमू
नानी की है कुनू कुनू
दादी की है अमू अमू
कुनू गाये कुहू कुहू
अमू थिरके मटक मटक
नानी लेती है बलैया
दादी लेती है बलैया
थू थू करके नज़र उतारे
सर पर रखकर हाथ
लेती है ईश्वर का नाम  ...

सूरज आता पूरब से
कहता है अपने रथ से
जागो कुनू
जागो अमू
सुबह हो गई
जागो जागो  ...

खिलखिलाकर उठती कुनू
इठलाकर देखती अमू
सूरज दादा आ जाओ
करती इशारे कुनू अमू
ये है मेरी कुनू अमू
मेरी साँसें कुनू अमू
कुनू अमू
कुनू अमू
चिड़िया पुकारे कुनू अमू
तितली पुकारे कुनू अमू

बोलो बोलो टाइगर
मिलना है क्या कुनू अमू से
बोला धीरे से टाइगर
गुर्ररर
मिलना है
मिलना है
मैं अपनी मम्मा के साथ आ रहा हूँ
बोली हँसके कुनू अमू
come come
आ जाओ
जल्दी जल्दी आ जाओ  ...

ऐ लायन ऐ लायन
मिलना है क्या कुनू अमू से
शेर दहाड़ा धीरे धीरे
और बोला
नई मिलना है नई मिलना है
मैं अपनी मम्मा के पास जा रहा हूँ
बोली हँसके कुनू अमू
go go go  ...

अब रात हो गई
बात गई
चंदा नाना आ गए
मिट्ठी लेकर कुनू अमू को
बोले चंदा
गुड नाइट :)

रविवार, 23 अप्रैल 2017

कुछ तुम समझो, कुछ हम समझें ...




कुछ तुम कहो - कुछ हम कहें :)
लम्बी लम्बी अबूझ भाषा में ......
जिसे कुछ तुम समझो,
कुछ हम समझें
...
जीवन को
बातों को
एक दूसरे को थामकर
समझना होता है
लो तुम मेरी ऊँगली पकड़ो
मैं तुम्हें अपनी हथेलियों की पकड़ में रखती हूँ
मंज़िल पाने के लिए
साथ साथ चलना ज़रूरी होता है
जिसे कुछ तुम समझो,
कुछ हम समझें

बिना कहानी के
सपनों का घोड़ा नहीं दौड़ता
कुछ नया कर दिखाने की
सुरंग नहीं बनाता
तो एक कहानी मैं सुनाती हूँ
फिर तुम सुनाओ
यादों का मीठा झरोखा ऐसे ही बनता है
जिसे कुछ तुम समझो,
कुछ हम समझें
... 

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

कुछ न कुछ तो बदलेगा न ,,




सोचती हूँ
एक सूरज खरीद लूँ
अँधेरे में रास्ता ढूँढ लेंगे
हर कदम पर
सूरज रख देंगे  ...

खरीद लाऊँ एक चाँद
कुछ सितारे
सिरहाने रखकर सोयेंगे
सपनों को उजाला देंगे

एक जादुई छड़ी भी ले लूँ
सबको परी बना देंगे
या फिर भोले को हाथी
काबुलीवाले को घर ले आएँगे

थोड़ी भक्ति
थोड़ा जज़्बा
थोड़ी विनम्रता
खरीद के ही सही
ले आएँगे
जो शहीद हो चुके हैं
उनकी कुर्बानी
याद करेंगे
सोने की चिड़िया हो जाए भारत"
यह आह्वान करेंगे।

एक सच्ची बात कहूँ
एक सूरज
एक चाँद,
कुछ सितारे
एक  जादू वाली छड़ी
थोड़ी भक्ति
थोड़ी विनम्रता
थोड़े जज़्बे की आग हमारे भीतर है
बस फूंक मारनी है
खुद को जीने का एहसास देना है
ताकि हौसले की चिंगारी
सामूहिक आग बने  ...

चलो
थोड़ा वक़्त
थोड़ी सीधी सोच
खरीद लें
कंदील की जगह टाँग दें
रौशन होगा घर
कुछ न कुछ तो बदलेगा न  ,,,