मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

वक़्त, तुम और मैं ...




वक़्त भागता है
और मैं उसके पीछे
कुनू ... अमु करते हुए
दौड़ती हूँ .
... अम्मू नानी पास
... आ जाओ कुनू
हाथ बढ़ाकर अमु ठुनकती है
अच्छा अच्छा तुम आ जाओ अमु
...
फिर दोनों को कहती हूँ
मैं बाहुबली नहीं हूँ
जाओ किसी को नहीं लेंगे ...
यह बात नहीं स्वीकारते हुए भी
मान लेती हैं दोनों
निःसन्देह यह विश्वास है
कि जाऊँगी कहाँ उनकी पकड़ से
और कितनी देर !

वक़्त को
उगते सूरज को
पक्षियों के गान को
धरती की हरियाली को
विस्तृत आकाश को
अपनी अपनी मुट्ठी में थामे
इन दोनों की दिनचर्या शुरू होती है
इनकी मीठी हँसी के दाने
मेरी ऊर्जा
और इनका  शोर  ...
अरे भाई,
बिना रोये गाये,
हठ किये
बचपन कहाँ गुजरता है !

इनकी ज़िद अपनी जगह
हम भी तो
इस बेफिक्र किलकारी में 
रंगों की पहचान कराना
नहीं भूलते
क से
A फॉर
10 तक की गिनती
छोटी छोटी कवितायेँ
कहानियाँ
प्रार्थना के बोल सिखा ही लेते हैं ।

इन्हें जिस तरह अपना खिलौना याद रहता है
अपनी शैतानियाँ याद होती हैं
ठीक उसी तरह
हम याद रखते हैं -
बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं
जैसा आकार दो  ... "

भागते वक़्त के साथ
कुनू अमु भागती है
उसी वक़्त के साथ
मैं भी दौड़ लगा लेती हूँ
ताकि परम्पराओं की छोटी सी घुट्टी ही सही
इन्हें पिला सकूँ
...

5 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' जी की ७९ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. अच्छे संस्कार देना पेरेंट्स का कर्तव्य होता है।

    कविता है या लेख है ये पता नही चला लेकिन लेखन काफी अच्छा था

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    1. दरअसल जो बहुत बढ़िया लिखते हैं, उनको ऐसी लेखनी में कमी नज़र आती है
      मैं कोशिश करुँगी

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  3. अपना बचपन, अपनी मां की याद दिलाने का शुक्रिया ...हूबहू तस्‍वीर उतार दी

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