गुरुवार, 28 मार्च 2019

सही कहा न ?



जब आदमी बहुत अकेला पड़ जाता है, किसी जंगल में, सुनसान रास्ते में फंस जाता है तब वह चाहता है कोई मिल जाए, कुछ कहकर मन को हल्का कर ले, रास्ते ढूंढ ले, सहयात्री बन रास्ता पार कर ले । अचानक किसी आहट पर मुड़ता है, मुस्कुराकर आगे बढ़ता है, वह आदमी बिना नज़र डाले आगे बढ़ जाता है । जंगल में बैठ जाता है, कोई मिले तो रास्ता ढूंढा जाए । समय गुजरता है, कोई व्यक्ति नहीं मिलता ।
फिर एक दिन ज्ञात होता है कि हम अकेले तो कभी थे ही नहीं, हमारी आत्मा कहने-सुनने को निरन्तर साथ थी, रास्ते किसी के बल पर नहीं ढूंढे जा सकते, खुद पर भरोसा करके बढ़ना होता है, कोलम्बस,वास्कोडिगामा कोई किसी के सहारे नहीं बनता । सहयात्री आत्मा के साथ हमारा पूरा शरीर होता है, बस बढ़ने की देरी है और आत्मविश्वास की ।
खुद पर विश्वास न हो तो किसी और पर कैसा विश्वास ?! सही कहा न ? 

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