पहचान क्या है ?
लोगों की जुबां पर एक नाम
इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ नाम
या चक्करघिन्नी सी चलती मां !
जो शहर शहर नहीं घूम पाती
बड़े बड़े समारोहों में नहीं दिखती
लेकिन सुबह से शाम तक
मन ही मन
दुअाओं के बोल बोलती है !
मा चिड़िया जैसी होती है
सामर्थ्य से अधिक भरती है उड़ान
चूजे भी रह जाते हैं हैरान
फिर गहराता है उनका विश्वास
मां तो जादूगर है
धरती को समतल कर सकती है
पहाड़ बना सकती है
बून्द बून्द जोड़कर नदी बना सकती है
उसकी पहचान उसके बच्चों में होती है
ज़िंदगी के हर घुमावदार रास्तों पर्
मां होठों पर् मंत्र की तरह उभर अाती है
पहचान क्या है - इस बात से परे
चाभी के गुच्छों सी मां
एक निवाले सी मां
अपनी पहचान बना ही जाती है !!!