शनिवार, 26 नवंबर 2016

चलते हुए तुम्हें खुद ब खुद सारे जवाब मिल जाएँगे ...




दोस्त बनाना 
मीठी बोली बोलना 
पर,
गहरी दोस्ती करते हुए याद रखना 
एक दोस्त मिले 
तो तुम खुशनसीब हो 
दो तो बहुत है  ... ... 
... तीसरा कभी मिल ही नहीं सकता !
ना,ना - तर्क मत करना 
कोई प्रश्न नहीं 
चलते हुए 
तुम्हें खुद ब खुद 
सारे जवाब मिल जाएँगे  ... !

बहुत सारे प्रश्नों का कोई जवाब नहीं होता 
होते हैं उनके 
अपने अनुभव 
और तभी व्यक्ति स्वीकार भी करता है 
जीवन का सत्य 
जीवन ही बताता है !

खैर, 
प्रकृति से तुम ज़रूर दोस्ती करना 
उसके पास सौन्दर्य है 
रहस्य है 
प्रतिध्वनियाँ हैं 
पर्वतों की ऊँचाई 
घाटियों का घुमाव 
नदी का अथाह जल 
खाई 
सुरंग 
भिन्न भिन्न वृक्ष 
अद्भुत लतायें 
जिज्ञासु विस्तार  ... 
... 
कौतुहल न हो 
चिड़ियों का सरगम न हो 
तो मन लक्ष्यभेद नहीं कर पाता 
और ज़रूरी है 
कि तुम आत्मसात करो 
हर व्यक्तिविशेष की खूबी 
सीखो परशुराम से 
कुछ राम से 
कुछ विभीषण से 
कुछ शबरी से 
सीता से 
यशोधरा से 
राहुल से 
बुद्ध से 
सीखो तुम भीष्म से 
विदुर से 
अर्जुन से 
कर्ण से 
दुआ है -
मिले तुम्हें संजय की दृष्टि 
तुम देख सको आगत 
जो निर्णय लेने में साथ दे 
... 
सीखने के लिए 
विष और अमृत 
दोनों के असर को समझना 
तभी 
हाँ तभी 
तुम्हें सही दोस्त मिलेगा 
 ... 

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

बड़े हो जाओ खूब बड़े हो जाओ पर थोड़ा रुको ... :)




बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको
नन्हें नन्हें फ्रॉक पहन लो अच्छी तरह :)
बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको
ये जो अबोध खिलखिलाहट है
उसे भरपूर जी लो, जीने दो :)
बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको
झां झां अच्छी तरह खेल लो :)
बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको
एक बार स्कूल जाने लगोगे
फिर ये सबक वो सबक
थोड़ा गुस्सा
थोड़ी हिदायतें  ... :)
बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको
अपनी नन्हीं सी दुनिया को
बाहों में समेट लो
एक नन्हीं सी डिबिया में संजो लो
नानी/दादी की कहानियों को
पापा,मम्मा के दुलार को
मामा मौसी बुआ के जादुई चिराग को
सिरहाने रख लो
जब कभी लगे
- कहाँ गया बचपन !
सब निकालना अपनी पिटारी से
फिर एक डायरी बनाना
सब लिखना
ताकि जब बहुत बड़े हो जाओ
तो एक दिन अपने घर की बालकनी में
उसे पढ़ते हुए
थोड़ा थोड़ा बच्चे बन जाना तुम
:)
बड़े हो जाओ
खूब बड़े हो जाओ
पर थोड़ा रुको  ... :)

रविवार, 20 नवंबर 2016

सिर्फ रट लेने से ज्ञान नहीं होता




कुछ लोग पढ़ते हैं, कुछ लोग रट लेते हैं  ... रट लेने से उसे हूबहू कॉपी पर उतार देने से नंबर तो मिल जाते हैं, लेकिन जीवन में वह काम नहीं आता। 
और रटा हुआ कुछ भी बीच से भूल गए तो समझो सबकुछ भूल गए।  जो सीख जीवन में काम न आ सके, तो यूँ ही उसे कहने से क्या फायदा ! 
चलो एक कहानी से इसे समझो - 

तोता रट

एक बार एक साधु ने अपनी कुटिया में कुछ तोते पाल रखे थे। सभी तोते को अपनी सुरक्षा के लिए एक गीत सीखा रक्खा था ।
गीत कुछ इस तरह था कि
‘शिकारी आएगा
जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
पर हम नहीं जाएंगे’
एक दिन साधु भिक्षा मांगने के लिए पास के एक गांव में गए ।
इसी बीच एक बहेलिया ने देखा एक पेड़ पर तोते बैठे हैं उसे उन पक्षियों को देख उसे लालच हुआ उसने उन सभी तोते को पकड़ने की योजना बनाने लगा ।
तभी तोते एक साथ गाने लगे
शिकारी आएगा
जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
पर हम नहीं जाएंगे । बहेलिया ने जब यह सुना तो आश्चर्यचकित रह गया
उसने इतने समझदार तोते कहीं देखें ही नहीं थे,
उसने सोचा इन्हे पकड़ना असंभव हैं ये तो प्रशिक्षित तोते लगते हैं ।
बहेलिया को नींद आ रही थी उसने उसी पेड़ के नीचे अपनी जाल में कुछ अमरूद के टुकड़े डाल कर सो गया,
सोचा कि संभवतः कोई लालची और बुद्धू तोता फंस जाएं ।
कुछ समय बाद जब वह सोकर उठा तो देखा कि सारे तोते एक साथ गा रहे थे
शिकारी आएगा
जाल बिछाएगा
दाना डालेगा
पर हम नहीं जाएंगे ।
पर वह यह गीत जाल के अंदर गा रहे थे।
शिकारी उन सब बुद्धू तोते की हाल देख हंस पड़ा और सब को पकड़ कर ले गया ।

किसी भी ज्ञान को रटने की बजाय उसे समझने पर बल देना चाहिए ।
क्योंकि रटा हुआ ज्ञान किसी काम का नहीं होता

तो तुमदोनों हमेशा बुद्धि और विवेक से काम लेना, जो कुछ माँ-पापा सिखायें ,उसे सीखना - रटना मत और बुद्धि-विवेक से तू तू मैं मैं मत करना 

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

कुनू जुनू खेल की "ऊँगली" और पढाई का "हाथ" थाम लेना





मेरी कुनू ,मेरी जुनू 

ज़िन्दगी में बहुत लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, और सीखने के लिए, उसे मन में उतारने के लिए उम्र की कोई बंदिश नहीं होती।  हर उम्र में एक नया दृष्टिकोण मिलता है, बहुत सी बातें - जो शुरू में मज़ाक लगती हैं, उनकी गंभीरता समय के साथ समझ में आती है। 
कुछ ऐसा ही लिखा है अर्चना आंटी ने  ... ब्लॉग से इनको जाना, फिर फेसबुक ने बहुत कुछ जानने का मौका दिया, और एक दिन ये आंटी मेरे पास आईं,  ... समझ लो, मेरी छोटी बहन हैं।  
इनकी बहुत सी कहानी बाद में, आज तो उनका यह लिखा संजो रही हूँ, ताकि तुम जब पढ़ो तो जानो कि समय एक सा नहीं होता  ... 



"खेल -खेल में" 

आओ तुम्हें बताऊं बात एक आज,
खोलूं अपने दिल का एक राज,
मेरा मन कभी पढाई मे नहीं लगता था,
हमेशा कक्षा की खिडकी से बाहर ही भागता था,
बहुत डरती थी मै पढाई करने से,
और हमेशा बचती थी कक्षा में खडे होकर पढने से,
मुझे हमेशा खेल बहुत भाए है,
लगता था जैसे ये मेरी ही माँ के "जाए" है,
कसकर हमेशा खेलों का पकडा था हाथ,
फ़िर भी न जाने कब? किस मेले मे, छूट गया था साथ,
कभी जब अपने बारे में सोचती हूं ,तो पाती हूं,
कि घर में सबसे बडी हूं, और सबसे ज्यादा पढी हूं,
शायद खेल और पढाई की दोस्ती थी,
और खेल ने ही छुपकर पढाई की उंगली पकड रखी थी,
पढाई मुझे बिना बताए मेरे साथ चलती रही,
और खेल को सामने देख मै खुश होती रही,
मै नहीं जानती थी कि जिन्दगी में कभी ऐसा मोड आएगा,
जहाँ पढाई आगे और खेल पीछे हो जाएगा,
पर बच्चों- हमेशा से ऐसा ही होता आया है,
पढाई ने हमेशा ही खेल को हराया है,
मगर अब समय रहते तुम इस बात को जान लेना,
खेल की "ऊँगली" और पढाई का "हाथ" थाम लेना,
तुम्हारे अन्दर भी बहुत "कुछ" है,
जो तुमने अब तक नहीं पाया है,
शायद ईश्वर ने उसे बहुत ही अन्दर छुपाया है,
तुम्हें यहाँ से आगे जाकर भी उसे ढूंढना है,
बहुत दूर तक चलना है,
दादा की लाठी लेना है,
दादी का हाथ पकड़ना है,
पिता के कंधे का बोझ हल्का करना है,
माँ के सपनों को पूरा करना है,
जीवन की नदिया मे बहकर सागर से जाकर मिलना है,
दुनियाँ के आसमान में रोशनी बनकर चमकना है,
अपना नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों पर लिखना है,
यहाँ तक तो सबका साथ था--
अब तुम्हें अकेले ही आगे बढ़ना है,
चाँद पर तो सब जा चुके ,
तुम्हें सूरज के घोडों पर चढना है।

रविवार, 6 नवंबर 2016

कुनू जुनू - आज मैं तुम्हें नचिकेता की कहानी सुनाती हूँ :) -




जीवन कहानियों से भरी
खुद ही एक कहानी है
...
कितने जिज्ञासु सवाल होते हैं
जिनके अलग अलग जवाब होते हैं !

पहले ज़िन्दगी रोती है
फिर तुतलाती है
पलटती है
घुटनों पर चलने की कोशिश करती है
दूध के दाँत लिए
मोहक हँसी हँसती है
फिर बहुत कुछ सुनते
देखते
सीखते
ज़िन्दगी सिखाने लगती है  ...

किताबें हर तरह की होती हैं
चयन अपना होता है
फिर भी,
अभिभावक चयन की नींव डालते हैं
मैं नानी/दादी
यह नींव दे रही हूँ
सवालों के जवाब जड़ों से ही मिलते हैं

एक जड़ मैं भी हूँ
आज मैं तुम्हें नचिकेता की कहानी सुनाती हूँ :) -



आश्रम का वातावरण हवन की सुगन्ध से भरा हुआ था. दूर – दूर के ऋषि महात्माओं को यज्ञ में बुलाया गया था. चारो और वेदमंत्रोच्चारण की ध्वनि गूंज रही थी.

बहुत पुरानी बात है जब हमारे यहाँ वेदों का पठन – पाठन होता था. ऋषि आश्रमों में रहकर शिष्यों को वेदों का ज्ञान देते थे. उन दिनों एक महर्षि थे वाजश्रवा. वे महान विद्वान और चरित्रवान थे. नचिकेता उनके पुत्र थे. एक बार महर्षि वाजश्रवा ने ‘विश्वजीत’ यज्ञ किया और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि इस यज्ञ में मैं अपनी सारी संपत्ति दान कर दूंगा.

कई दिनों तक यज्ञ चलता रहा. यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने अपनी सारी गायों को यज्ञ करने वालो को दक्षिणा में दे दिया. दान देकर महर्षि बहुत संतुष्ट हुए.

बालक नचिकेता के मन में गायों को दान में देना अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे गायें बूढी और दुर्बल थी. ऐसी गायों को दान में देने से कोई लाभ नहीं होगा. उसने सोचा पिताजी जरुर भूल कर रहे है. पुत्र होने के नाते मुझे इस भूल के बारे में बताना चाहिए.

नचिकेता पिता के पास गया और बोला, ” पिताजी आपने जीन वृद्ध और दुर्बल गायों को दान में दिया है उनकी अवस्था ऐसी नहीं थी कि ये दूसरे को दी जाएँ.

महर्षि बोले, ” मैंने प्रतिज्ञा की थी कि, मैं अपनी साड़ी सम्पत्ति दान कर दूंगा, गायें भी तो मेरी सम्पत्ति थी. अगर मैं दान न करता तो मेरा यज्ञ अधूरा रह जाता.

नचिकेता ने कहा, ” मेरे विचार से दान में वही वास्तु देनी चाहिए जो उपयोगी हो तथा दूसरो के काम आ सके फिर मैं तो आपका पुत्र हूँ बताइए आप मुझे किसे देंगे ?

महर्षि ने नचिकेता की बात का कोई उत्तर नहीं दिया परन्तु नचिकेता ने बार – बार वही प्रश्न दोहराया. महर्षि को क्रोध आ गया. वे झल्लाकर बोले, ” जा, मैं तुझे यमराज को देता हूँ.

नचिकेता आज्ञाकारी बालक था. उसने निश्चय किया कि मुझे यमराज के पास जाकर अपने पिता के वचन को सत्य करना है. अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा तो भविष्य में मेरे पिता जी का सम्मान नहीं होगा.

नचिकेता ने अपने पिता से कहा, ” मैं यमराज के पास जा रहा हूँ. अनुमति दीजिये. महर्षि असमंजस में पड़ गये. काफी सोच – विचार के बाद उन्होंने ह्रदय को कठोर करके उसे यमराज के पास जाने की अनुमति दी.

नचिकेता यमलोक पहुँच गया परन्तु यमराज वहां नहीं थे. यमराज के दूतों ने देखा कि नचिकेता का जीवनकाल अभी पूरा नहीं हुआ है. इसलिए उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया. लेकिन नचिकेता तीनो दिन तक यमलोक के द्वार पर बैठा रहा.

चौथे दिन जब यमराज ने बालक नचिकेता को देखा तो उन्होंने उसका परिचय पूछा. नचिकेता ने निर्भीक होकर विनम्रता से अपना परिचय दिया और यह भी बताया  कि वह अपने पिताजी की आज्ञा से वहां आया है |

यमराज ने सोचा कि यह पितृ भक्त बालक मेरे यहाँ अतिथि है. मैंने और मेरे दूतों ने घर आये हुए इस अतिथि का सत्कार नहीं किया. उन्होंने नचिकेता से कहा, ” हे ऋषिकुमार, तुम मेरे द्वार पर तीन दिनों तक भूखे – प्यासे पड़े रहे, मुझसे तीन वर मांग लो |

नचिकेता ने यमराज को प्रणाम करके कहा, ” अगर आप मुझे वरदान देना चाहते है तो पहला वरदान दीजिये कि मेरे वापस जाने पर मेरे पिता मुझे पहचान ले और उनका क्रोध शांत हो जाये.

यमराज ने कहा- तथास्तु, अब दूसरा वर मांगो.

नचिकेता ने सोचा पृथ्वी पर बहुत से दुःख है, दुःख दूर करने का उपाय क्या हो सकता है ? इसलिए नचिकेता ने यमराज से दूसरा वरदान माँगा-

स्वर्ग मिले किस रीति से, मुझको दो यह ज्ञान |
मानव के सुख के लिए, माँगू यह वरदान ||

यमराज ने बड़े परिश्रम से वह विद्या नचिकेता को सिखाई. पृथ्वी पर दुःख दूर करने के लिए विस्तार में नचिकेता ने ज्ञान प्राप्त किया. बुद्धिमान बालक नचिकेता ने थोड़े ही समय में सब बातें सीख ली. नचिकेता की एकाग्रता और सिद्धि देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने नचिकेता से तीसरा वरदान माँगने को कहा |
नचिकेता ने कहा, ” मृत्यु क्यों होती है ? मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है ? वह कहाँ जाता है ?

यह प्रश्न सुनते ही यमराज चौंक पड़े. उन्होंने कहा, ” संसार की जो चाहो वस्तु माँग लो परन्तु यह प्रश्न मत पूछो किन्तु नचिकेता ने कहा, ” आपने वरदान देने के लिए कहा, अतः आप मुझे इस रहस्य को अवश्य बतायें |

नचिकेता की दृढ़ता और लगन को देखकर यमराज को झुकना पड़ा.

उन्होंने नचिकेता को बताया की मृत्यु क्या है ? उसका असली रूप क्या है ? यह विषय कठिन है इसलिए यहाँ पर समझाया नहीं जा सकता है किन्तु कहा जा सकता है कि जिसने पाप नहीं किया, दूसरो को पीड़ा नहीं पहुँचाई, जो सच्चाई के राह पर चला उसे मृत्यु की पीड़ा नही होती. कोई कष्ट नहीं होता है.

इस प्रकार नचिकेता ने छोटी उम्र में ही अपनी पितृभक्ति, दृढ़ता और सच्चाई के बल पर ऐसे ज्ञान को प्राप्त कर लिया जो आज तक बड़े – बड़े पंडित, ज्ञानी और विद्वान् भी न जान सके |

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

कुनू जुनू चिरागी जिन्न दोस्त होता है :)




बचपन में सुना -
अलीबाबा चालीस चोर
मन करता था अलीबाबा बन जाऊँ
कहूँ पहाड़ के आगे
"खुल जा सिम सिम"
और रास्ता बन जाए
खजाना मिल जाए
....
....
कुछ आगे बढ़ी
तो नज़र में आया अलादीन का चिराग !
चाहा तहेदिल से
मिल जाये चिराग
निकल आये जिन्न
और सारे काम चुटकियों में हो जाये
… इस सुविधा में यह भी ध्यान रखा
कि जिन्न कभी खाली नहीं बैठे !

फिर ख्यालों में उतरी
सिंड्रेला की लाल परी
चमकते जूते
घोड़ागाड़ी
घेरेवाला फ्रॉक …
छड़ी का कमाल लिए
सिंड्रेला बनती रही ख्यालों में
12 न बज जाए
याद रखा …
इन सारे ख्यालों में
उम्र कोई बाधा नहीं थी
नन्हीं उम्र से आज तक
इंतज़ार किया है
अलीबाबा,अलादीन,सिंड्रेला
जिनि, ... तिलस्मी इतिहास का !
जादुई ज़िन्दगी की तलाश दिलोजान से रही
उम्मीद के तेल आज भी भरपूर हैं
जिसकी बाती आगे करके
अब पुकारती हूँ इनको
अपनी कुनू
और
अपनी जुनू के लिए :)
मोगली को बुलाती हूँ
बघीरे से दोस्ती करती हूँ
अलादीन के चिराग पर लिखती हूँ
तुमलोगों के नाम
अरे, अरे आराम से
अभी आएगा जिन्न
और तुमसे कहेगा
"कहो मेरे आका
क्या हाज़िर करूँ ?"
अच्छी तरह से सोच लो
और याद रखो,
इन जादुई कहानियों के संग
वक़्त जादू की तरह बीतता है
चिरागी जिन्न दोस्त होता है :)