गुरुवार, 3 नवंबर 2016

कुनू जुनू चिरागी जिन्न दोस्त होता है :)




बचपन में सुना -
अलीबाबा चालीस चोर
मन करता था अलीबाबा बन जाऊँ
कहूँ पहाड़ के आगे
"खुल जा सिम सिम"
और रास्ता बन जाए
खजाना मिल जाए
....
....
कुछ आगे बढ़ी
तो नज़र में आया अलादीन का चिराग !
चाहा तहेदिल से
मिल जाये चिराग
निकल आये जिन्न
और सारे काम चुटकियों में हो जाये
… इस सुविधा में यह भी ध्यान रखा
कि जिन्न कभी खाली नहीं बैठे !

फिर ख्यालों में उतरी
सिंड्रेला की लाल परी
चमकते जूते
घोड़ागाड़ी
घेरेवाला फ्रॉक …
छड़ी का कमाल लिए
सिंड्रेला बनती रही ख्यालों में
12 न बज जाए
याद रखा …
इन सारे ख्यालों में
उम्र कोई बाधा नहीं थी
नन्हीं उम्र से आज तक
इंतज़ार किया है
अलीबाबा,अलादीन,सिंड्रेला
जिनि, ... तिलस्मी इतिहास का !
जादुई ज़िन्दगी की तलाश दिलोजान से रही
उम्मीद के तेल आज भी भरपूर हैं
जिसकी बाती आगे करके
अब पुकारती हूँ इनको
अपनी कुनू
और
अपनी जुनू के लिए :)
मोगली को बुलाती हूँ
बघीरे से दोस्ती करती हूँ
अलादीन के चिराग पर लिखती हूँ
तुमलोगों के नाम
अरे, अरे आराम से
अभी आएगा जिन्न
और तुमसे कहेगा
"कहो मेरे आका
क्या हाज़िर करूँ ?"
अच्छी तरह से सोच लो
और याद रखो,
इन जादुई कहानियों के संग
वक़्त जादू की तरह बीतता है
चिरागी जिन्न दोस्त होता है :)

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