शनिवार, 28 जनवरी 2023

एक कुनू और एक अमु


 

एक कुनू और एक अमु
दिनभर करती है मनमानी
खूब लगाती दोनों गप्पें
जब आ जाती विडियो कौल पे
मोबाइल कहीं - वो दोनों कहीं
अपने अपने खेल हैं खेलती
बीच-बीच में आश्वस्त होने को
एक दूजे को आवाज हैं देती ।

मध्यांतर में अचानक 
थोड़ी शैतानी
थोड़ी बेईमानी संग
होती है घनघोर लड़ाई 
मुंह फुलाकर एक दूजे से
भौंहे तानके चेहरे पर
दोनों बन जातीं मासूम !

आना पड़ता है फिर बड़ों को 
समझाइश की छड़ी लिए
किसकी कितनी गलती है
होता उसका सही हिसाब है
ना,ना करते करते दोनों 
कर लेती फिर सब स्वीकार हैं ।

फिर बजता है फोन
शुरू होता है खेल नया 
सारे खेल के बीच 
एलेक्सा को पड़ती है डांट भी जमकर ।
सच में जो कहीं बैठी होती एलेक्सा 
तो बड़े जोर से चिल्लाती,
हर आदेश को झटककर नीचे
 लम्बी चुप्पी साध ही लेती ! 

रश्मि प्रभा

बुधवार, 8 सितंबर 2021

कुनू अमु के लिए


 

हमारा घर पूरा का पूरा हमारा मन पूरा का पूरा हमारी नींद हमारे सपने तुमसे जुड़े हैं । हम तो काट छांट करते ही रहेंगे लेकिन तुम्हें खुद पर अपना भरोसा भी रखना होगा लक्ष्य पर अविचल दृष्टि और दिमाग को टिकाना होगा, किसी भी साधारण,असाधारण तुलना से परे अपने अस्तित्व को पहचानना होगा और उसका सबसे पहला सम्मान तुम्हीं करोगी । आत्मसम्मान की रक्षा में खड़े स्तम्भ को कोई नहीं हिला सकता, न डिगा सकता है । याद रखना - 'लोग क्या कहेंगे!' वह ख़ंजर है जो एक एक साँसों को काटता है, इसलिए हमेशा मन की सुनना कि मन क्या कहता है ! मन जब टोके और रोके तब उसे भूलकर भी अनसुना मत करना । मन को मित्र बना लो एक वही भरोसेमंद है और उसे सर्वोपरि रखना । वह जिस बात को जिस कदम को गलत कहे उस पर अमल करना उसी वक़्त रुक जाना बाकी तो बड़ों का आशीर्वाद है ही जो बेमन से भी दिया जाए तो अपना असर नहीं खोता कि दुआओं का चिराग कभी निष्तैल नहीं होता।

रविवार, 19 जुलाई 2020

मेहंदी की खुशबू





एक वक्त था,
जब सावन आता था,
और मैं शिवानी की नायिका,
शरतचन्द्र की नायिका,
मैत्रेयी की नायिका बन जाती थी ।
हरी चूड़ियों से भरी कलाई पर,
मैं खुद ही वारी वारी जाती थी ।
बिछिया, पायल और धानी चुनर,
मैं सर से पाँव तक एक उपन्यास बन जाती थी ।
आसमान से बाँधती थी झूला,
पहाड़ों तक पींगे लेती थी ।
नदिया, सागर की लहरें,
मेरे साथ साथ चलती थीं ...
बिना मेहंदी सावन शुरू ही नहीं होता था
... अचानक !
मैं नायिका होने के ख़ुमार से दूर हो गई,
जितिया, नवरात्रि, खरमास में बदली गई चूड़ियाँ,
कलाइयों में ठहर गई ।
उदासीनता गहरी होती गई,
हँसी अधिकतर बनावटी हो गई,
आँखों के मेघ भी छंट गए,
चेहरा बंजर होने लगा ...
ईश्वर की लीला,
दो बूंद बारिश हुई
मैं ही सावन बन गई,
बन गई झूला,
पसंद करने लगी
नन्हीं नन्हीं चूड़ियाँ ।
ये बूंदें कभी मोर बन जाती हैं,
कभी मेघ गर्जना,
कभी बरसती हैं,
गोद को झूला बना झूलती हैं
मेरी हथेलियों में
स्वाति नक्षत्र की फुहार सी पड़ीं
दो बूंदें ....
एक बूंद कात्या
एक बूंद अमाया
इनसे आती है _ सोंधी सोंधी खुशबू
वे तपते दिल पर बरसती जाती हैं,
मेरा पूरा वजूद
मिट्टी का घर बन जाता है
और वे -
शिवानी, शरतचन्द्र, मैत्रेयी की नायिका,
नज़रबटटू बन मैं उनके साथ रहती हूँ,
अब मेहंदी की खुशबू फिर से बिखरेगी ...

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

चंदा मामा आओ




चंदा मामा आओ
मामी को लेकर आओ
तारों को लेकर आओ …
क्या हाल है ध्रुवतारे का
जल्दी जल्दी बतलाओ
सप्तऋषि जी कैसे हैं ?
जैसे थे क्या वैसे ही हैं
कहना सब से
यहाँ धरती के घर में
हमसब करते इंतज़ार हैं
......
क्या खाओगे बतला दो
चूड़ा दही
या लिट्टी चोखा
कहोगे तो धुसका भी दूँगी
यम्मी यम्मी पिट्ठा भी
लेकिन दुद्धू नहीं मिलेगा
ये है सिर्फ कुनू अमु के लिए ।
उनके लिए बताशे लाना
ले आना शिर्डी से साईं
शिव पार्वती को कैलाश से लाना
मूषक संग गन्नू को लाना
हनुमान जी को संजीवनी संग
कृष्णा को बाँसुरी के संग
राधा प्यारी आ जाएगी
ब्रह्मा विष्णु भी पत्नी संग
सब मिलजुलकर कुनू अमु को हँसाएँगे
परियों से मिलायेंगे
लोरी सुनायेंगे
झूले में झुलायेंगे
रात मुस्कुराएगी
शुभरात्री कह जाएगी ....
मिट्ठी लेकर कुनू अमु की
हमसब भी सो जायेंगे
शुभरात्री😊

सोमवार, 6 जुलाई 2020

शत शत बार लूँ  बलैया




नानी जादू
दादी जादू
पूरा जादू मंतर है
सुनो कहानी उसकी
फिर जानोगे
नानी दादी खुद रहस्य है ।
राम और कृष्ण
सीता और राधा
उसके बहते आँसू हैं
उसका चिमटा
जब आग में डोले
दिखती झांसी की रानी है ।
उसके कलेजे लगकर देखो
मिलेगा भारत का इतिहास
क्या था भारत
क्या हुआ भारत
क्या है भारत
ज्ञान का अद्भुत स्रोत पाओगे ।
नहीं बोलती वह अंग्रेजी
तो क्या हुआ
जानती तो है
प्रथम रश्मि का आना
रश्मिरथी पर
उसकी जिह्वा पर रंगिणि सा चहका
श,ष,स का सही उच्चारण
उसकी है पहचान ।
कबीर,रसखान के अर्थ
वह तुमको देगी
नज़र उतारेगी
वेद ऋचाओं से
रहस्यवाद की सीढ़ियों से
मानसरोवर ले जाएगी ।
गर मन इसे अस्वीकार करे
तो गौर से देखना
उसके चेहरे को
वह गंगा जो भगीरथ प्रयास से,
देवनगरी को छोड़,
धरती पर उतरी थी कभी,
वहीं बहती मिलेगी,
चेहरे पर जन्म ले रहीं झुर्रियां
और हैं क्या !
गंगा की रेती पर
लहरों के चढ़ने_ उतरने
सुबह और शाम के गुजरने के
रेशम से मलमली निशान ...
प्यार दुलार आशीर्वचनों से भरी
लेती जायेगी शत शत बार बलैया
ॐ ॐ के उच्चारण से
देगी तुमको थपकी ।

रविवार, 12 जनवरी 2020

कुनू अमु चश्मा पहनके



कुनू अमु चश्मा पहनकर
जंगल घूमने गई,
वहाँ पे उनके लिए लायन ने 
चिकेन चावल बनाया ।
मंकी लाया अंगूर केला,
भेड़िया ने सलाद बनाया
वेलकम की तख्ती लगाकर
खरगोश खूब मुस्कुराया
हिरण ने तम्बोला खेलाया
तेंदुआ आइसक्रीम लाया ।
हाथी ने अपनी पीठ पे लेकर
कुनू अमु को घुमाया
ऊंट बोला
मैं भी हाज़िर हूँ तुम्हारे आगे
आओ चलो हम साथ चलकर
पूरा रेगिस्तान नापें ।
व्हेल बोली ओ कुनू अमु
आओ समन्दर के पास
यहाँ पे देखो नृत्य मेरा
तुम भी ठुमक के दिखाओ ।
लोमड़ी का सारा ध्यान
था उनके चश्मे पर
उसकी आंखें देखकर
गीदड़ समझ गया था,
उसके इशारे पे छोटा डॉगु
दौड़ा दौड़ा आया
इतनी जोर से भूका कि
लोमड़ी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई
कुनू अमु स्माइल करके घर को वापस आई
कुनू अमु चश्मा पहनके ...

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

परियां होती हैं विश्वसनीय सपनों में





















विज्ञान नहीं बता सकता कभी कि परियां होती हैं या नहीं,
परियां होती हैं विश्वसनीय सपनों में,
बिना किसी अनुसन्धान के,
वे खेलने आ जाती हैं उन बच्चों के साथ,
उन बड़ों के साथ,
जिनकी सोच शतरंज की बिसात पर नहीं होती,
नहीं चलते जो रहस्यात्मक चाल,
बस जिनके अंदर होता है हमेशा,
एक विस्तृत हरा भरा मैदान,
जिनकी हथेलियों में होता है,
कुछ जादू सा कर दिखाने का हौसला,
जिनके एक इशारे पर,
परियां आ जाती हैं जादुई छड़ी लेकर,
कभी सब्ज़ परी,
तो कभी लाल परी बनकर ।
व्यवहारिक होकर,
तुम परियों तक नहीं पहुँच सकते,
ना ही बच्चों की आंखों में
ख्वाब भर सकते हो ।
किसी दिन,
किसी पल के लिए,
तुम अगर सांता नहीं बनते,
परियों की जीती जागती दुनिया नहीं बसा सकते,
तो तुम्हारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से,
बच्चे कभी जुड़कर भी नहीं जुड़ेंगे,
तितलियों संग उड़ना नहीं सीखेंगे ...