मंगलवार, 21 मार्च 2017

एक थी अच्छाई और एक थी बुराई






आओ कुनू जुनू
आज तुम्हें एक कहानी सुनाऊं
अच्छाई और बुराई की कहानी सुनोगी ?

अरे अरे डरो मत
कुछ नहीं सिखाउँगी
बस कहानी सुनाउँगी  ....
बहुत समय की बात है ,
एक थी अच्छाई
और एक थी बुराई (होने को तो आज भी हैं )
दोनों अपने अपने घर में रहते थे

अच्छाई
अपनी खिड़की से
बुराई को देख
मीठी सी मुस्कान देती
बुराई
धड़ाम से अपनी खिड़की बन्द कर देती
अच्छाई
मीठे बोल बोलती
बुराई
बुरे बोल बोलती ...

एक दिन भगवान
बारी बारी
 दोनों के घर आए
अच्छाई ने उनके चरण पखारे
जो कुछ उसके पास था
खाने को दिया
सोने के लिए चटाई दी
और पंखा झलती रही ....
भगवान् ने पूछा ,
सामने कौन रहती है ?
अच्छाई ने कहा - मेरी बहन
भगवान ने पूछा - नाम क्या है ?
अच्छाई कुछ देर चुप रही , फिर कहा - अच्छाई !
भगवान मुस्काए ,
उसके सर पर हाथ रखा
और चले गए ...

बुराई ने घर आते भगवान् को
यह कहते हुए रोका
किस हक़ से आ रहे हो ?
कौन हो तुम?
मैं भगवान ...."
बुराई ने कहा ,
सुनो,
अपना ये तमाशा
उस अच्छाई पर दिखाना
भगवान ने कहा ,
वह तो तुम्हारी बहन है न ?
बुराई ने तमककर कहा ...
उसे झूठ बोलने की आदत है
खुद को अच्छा दिखाने के लिए
सारे नाटक करती है
भगवान् ने कहा =
कुछ खाने को दोगी ?
बुराई ने कहा -
ना मेरे पास वक़्त है,
ना देने को खाना
और भगवान को निकल जाने को कहा
भगवान मुस्काए
और बिना कुछ कहे चले गए
.................
कैलाश जाकर
भगवान ने पार्वती से कहा -
अच्छाई कितनी भी कोशिश करेगी
बुराई को ढंकने की
बुराई उसे हटा देगी
और सारे इलज़ाम अच्छाई को देगी ....
...............
बच्चों मुझे सिखाना कुछ भी नहीं है
बस इतना बताना है
कि
'अच्छाई से बुराई को छुपाया नहीं जा सकता
और बुराई अच्छाई को कभी अच्छा नहीं कह सकती '
अब आगे जानो तुम
हम होते हैं गुम ......
:)

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