आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता
भले ही वह बेमन से दिया गया हो
लेकिन वह ले लेता है ॐ की आकृति
जीवन के हर कदम पर
करता है शंखनाद
और अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है ...
इसलिए चरण छूना
हाथ जोड़ना
अपने संस्कारों की तिजोरी में रखना
सामनेवाला क्या है
इससे अपने को प्रभावित मत करना ...
पूर्व से उदित सूर्य
पश्चिम में अस्त होता है
कोई नमन करे
ना करे
वह अपनी परंपरा नहीं बदलता
ग्रहण हो
या बादलों का घना साया
वह अपनी प्रकृति नहीं बदलता
और इसीमें
उसकी गरिमा है
उसका अस्तित्व है ...
हमारी प्रकृति
हमारी गरिमा
ईश्वरीय देन है
कोई कीचड़ उछाल दे
तो मन क्षुब्ध होता है
लेकिन अपना स्वभाव
बुद्धि और विवेक का काम करता है ...
इसका अर्थ यह नहीं
कि तुम कीचड़ को सर माथे लगाओ
हाँ,
उसके मध्य से कमल लाने के लिए
तुम्हें संतुलित क़दमों से ही चलना होगा
....
सीधी सी बात है
कीचड़ तुम्हारे संतुलन से
अपना स्वभाव नहीं बदलता
फिर तुम उसकी वजह से
उसकी श्रेणी में क्यूँ आओ !
तर्क स्वस्थ मानसिकता का प्रतीक है
कुतर्क अस्वस्थ मानसिकता का
तुम्हें तय करना है
तुम स्वस्थ रहना चाहते हो
या व्यर्थ की बातों में समय गँवाकर
स्वस्थ होकर भी खुद को बीमार रखना !!
क्षणांश के लिए
मन की उद्विग्नता स्वाभाविक है
पर अपने "मैं" पर
यानि अपने भीतर की अलौकिक शक्ति पर
ध्यान केंद्रित करना
कुछ समय चुप रह जाना
तुम्हें रास्तों का विकल्प देगा
तुम्हारे हाथों में सही चाभी देकर
तुम्हें सुरक्षित रखेगा।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंवो करे ना करे देना जरूरी है :)