सूरज चाचू
तुम्हें ठंड नहीं लगती क्या ?
इतना घना कुहरा
कोहरे में तुम
कोई गर्म कपड़ा
क्यूँ नहीं पहन लेते ?
तुम्हारी मम्मा
तुम्हें नहीं समझाती क्या ?
कम से कम इन कोहरों को डाँटे
"अरे, भागो यहाँ से"
...
बैठो न सूरज चाचू हमारे पास
दूध
एज घूँट चाय
एक टुकड़ा रोटी का देंगे हम
अपने खिलौनों से खेलने देंगे हम
अपना कम्बल भी उढ़ायेंगे
...
एक बात बताओ
तुम कभी थकते नहीं क्या ?
निकलते हो,
अस्त होते हो
फिर कहीं और निकल जाते हो
आओ,
ज़रा सा आराम कर लो
हमारे संग हाथ मिलाओ
छुप्पाछुप्पी खेलो
हमारे हिस्से की लोरी सुनके
गहरी नींद सो जाओ ...
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