बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

कुनू जुनू - घर कभी रुपयों से नहीं बनता




वो जो घर की दीवारों पर धब्बे नज़र आते हैं
आता है नज़र
थोड़ा दरका हुआ पलस्तर
सीमेंटेड आँगन में कुछ टूटा फूटा हिस्सा
वह यादों का एल्बम होता है
अनगिनत पृष्ठ
अनगिनत कैद लम्हे
तस्वीरें थोड़ी मुड़ी तुड़ी  ...
इतनी मीठी कहानी कोई और नहीं होती
हो ही नहीं सकती  ...

यही कहानियाँ नानी/दादी की ज़ुबानी सुनी जाती हैं
अनुभवों से जो शिक्षा मिले
वही जीवन का निष्कर्षित मन्त्र होता है
जो खेल खेल में गिरकर उठना सिखाता है
दर्द को भी गीत बना जाता है !

घर कभी रुपयों से नहीं बनता
घर अपनों के एहसास से बनता है
परियों सी होती है बुआ और मौसी
रानी सी माँ
राजा से पापा
अलादीन का चिराग होते हैं मामा/चाचा
रिश्तों का जादू न हो
तो महल भी होता है वीराना
!

ज़िन्दगी तभी मीठी होती है
जब मिस्री सी मिठास मन में होती है
और मिस्री के टुकड़े नानी/दादी देगी न :)

4 टिप्‍पणियां:

  1. कुनू जुनू की दादी/नानी तो जरूर देगी ...😊

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  2. रुपयों से
    भी बनते हैं
    घर एक नहीं कई
    रहते नहीं हैं
    मगर ज्यादा दिन
    खर्च हो जाते हैं
    दीवारें दरवाजे और
    खिड़कियाँ
    समय के साथ
    दीवारें कागज
    कागज हो जाती हैं
    उड़ जाती हैं
    हवा के झोंकों में
    घर नहीं रहता है
    पासबुक हो जाता है
    बस समय का
    हिसाब किताब
    रेत पर लिखा
    जैसा कुछ
    बच गया
    तो नजर आता है ।

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