प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ, कहाँ हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने वह गाना?
सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊँघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।
शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।
स्नेह-हीन तारों के दीपक,
श्वास-शून्य थे तरु के पात,
विचर रहे थे स्वप्न अवनि में
तम ने था मंडप ताना।
कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!
गा तू स्वागत का गाना,
किसने तुझको अंतर्यामिनि!
बतलाया उसका आना! ...
इसे प्रकृति कवि पंत ने लिखा है , और तुम्हारी नानी/दादी का प्रकृति से जुड़ा नाम उन्होंने ही रखा है। (यह तो मैं बता ही चुकी हूँ ) मेरा नाम विशेष है, क्योंकि इसके लिए मेरे पापा ने कहा था - "बेटी, तुम रश्मि ही बनना"
प्रकृति कवि ने मुझे सूर्य के साथ जोड़ दिया, सूर्य की सारी तपिश को बांटकर एक एक रश्मि धरती के कोने कोने में आह्लादित होती है, सुबह से शाम तक जीवन राग सुनाती है।
सूर्य रश्मि और एक पक्षी में गजब का संबंध होता है - दोनों ब्रह्ममुहूर्त का प्रथम राग बनते हैं
सृष्टि सुषुप्तावस्था से उबरती है प्रथम रश्मि और रंगिणी के घोसले से आती चहचहाहट से, मन्त्रों का शंखनाद होता है, अजान के स्वर गूंजते हैं, गुरवाणी मुखरित होती है, बुद्ध की शरण में मन अग्रसर होता है .
यह सब कहने, बताने का एक ही लक्ष्य है कि तुमदोनों ब्रह्ममुहूर्त से रिश्ता कायम करना
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा तभी मिलते हैं
रचनात्मकता उनसे ही मिलती है
तात्पर्य यह कि जीवन को सीखने के लिए
रंगिणी बनना
समय की उपयोगिता समझना
जब भी कहीं कोई प्रश्न अँधेरा बनकर खड़ा हो
ब्रह्ममुहूर्त में हाथ में जल लेकर
सूर्य का स्वागत करना
तुम्हें समाधान मिलेगा
और हर समाधान के साथ ढेरों कहानियाँ
जिन्हें तुम सुनाना
सुन्दर। बच्चों का ब्र्ह्ममुहूर्त तो बदल चुका है। जरूरी है समझना।
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